अतरौलिया । शरद पूर्णिमा से लगने वाले तीन दिवसीय ऐतिहासिक मेले की तैयारियां जोरों पर।

अतरौलिया । शरद पूर्णिमा से लगने वाले तीन दिवसीय ऐतिहासिक मेले की तैयारियां जोरों पर। बता दे की अतरौलिया का प्रसिद्ध ऐतिहासिक मेला जो पूर्णिमा के दिन शुरू होता है और लगातार तीन दिनों तक रहता है, इस बार अतरौलिया का मेला 29/30/31 तक रहेगा उसे लेकर तैयारी इन दिनों जोरो पर चल रही है। जगह-जगह विद्युत झालरों से पूरे नगर पंचायत को सजाया जा रहा है वही प्रमुख स्थानों पर लगने वाली मूर्तियों को मूर्त रूप दिया जा रहा है। भव्य पूजा पंडाल को देखने के लिए बहुत ही दूर-दूर से लोग आते हैं जिसकी चर्चाएं शुरू हो गई है। वहीं मेले की तैयारी को लेकर प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद रहता है। लगातार तीन दिनों तक चलने वाले इस ऐतिहासिक मेले के आखिरी दिन लगभग 1 लाख से ऊपर की भीड़ लगती है और मेला पूरी रात चलता है, वहीं मेले में सामानों की बिक्री के लिए दूर-दूर से दुकानदार अभी से अपनी दुकानों को व्यवस्थित करने में लगे हैं। नगर पंचायत में लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले के पहले दिन और दूसरे दिन पूजा पंडाल में पूजा पाठ के साथ मूर्तियों के पट खोलकर मेला शुरू कर दिया जाता है तो वहीं तीसरे दिन जमकर खरीदारी के साथ भव्य मेला लगता है जिसमें लगभग लाखों लोग पहुंचते हैं। आखिरी दिन पूजा पंडाल में जागरण व मनमोहन झांकी का भी आयोजन किया जाता है। पूजा पंडाल के पास समिति के वालंटियर तथा प्रशासन के लोग बराबर चक्रमण करते रहते हैं। इस ऐतिहासिक मेले को लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही है। गोला क्षेत्र दुर्गा पूजा समिति के सदस्य प्रवीन मद्धेशिया ने बताया कि अतरौलिया का मेला काफी पुराना मेंला है और इसे पूर्णिमा के मेले के रूप में जाना जाता है ।यह मेला 29 /30 और 31 तक चलेगा । 31 तारीख की रात को या सुबह में मूर्ति विसर्जन होगा।अतरौलिया के मेले की सैकड़ो वर्ष पुरानी परंपरा है। खास बात यह है कि यहां मुसाफिर चौक पर शंकर जी की गुफा, शंकर जी त्रिमुहानी पर प्राकृतिक साज सज्जा में मां विंध्यवासिनी, गोला क्षेत्र में प्राचीन मंदिर ,हनुमानगढ़ी पर भव्य पंडाल का रूप, तो वहीं बरन चौक पर कभी मोती के रूप में तो कभी सरसों के दोनों से कभी शीप द्वारा मूर्त रूप दिया जाता है। यह मेला काफी प्राचीन होने के साथ-साथ बहुत विशाल मेला है। तीसरे दिन मिला पूरी रात भर चलता है। सुंदर झालरों से पूरे नगर पंचायत को सजाया जाता है तथा प्रकाश की समुचित व्यवस्था की जाती है। खास बात यह है की पूजा पंडालो को बनाने में यही के स्थानीय लोग होते हैं।

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