देश के विभिन्न राज्यों से आए आरटीआई कार्यकर्ताओं ने दी लखनऊ मे दस्तक,बड़े-बड़े विभागों मे अधिकारियों के दिलो की बढी धडकन
देश के विभिन्न राज्यों से आए आरटीआई कार्यकर्ताओं ने दी लखनऊ मे दस्तक,
बड़े-बड़े विभागों मे अधिकारियों के दिलो की बढी धडकन
संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 लागू हो जाने के बाद भी जब सच की लड़ाई लड़ने वालों को वांछित सूचना नहीं मिली तो 'खींचो न कमानो को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालों - अकबर इलाहाबादी' के इस कथन को आत्मसात करते हुए देश के आरटीआई कार्यकर्ता लामबंद होने लगें और सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रदेशों के सूचना आयोग के समक्ष ज़ोरदार ढंग से अपनी समस्याओं को रखकर सही ढंग से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के पालन हेतु एक मुहिम छेड़ दिया है । इसी कड़ी में पुनः उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग लखनऊ के ढुलमुल रवैया के कारण आर टी आई कार्यकर्ताओं द्वारा 19 अप्रैल 2023 को दोबारा राज्य सूचना आयोग के दरवाजे पर पहुंच कर व्हिसिलब्लोअर के रूप में आयोग का दरवाज़ा खटखटाया जिससे प्रदेश एवं देश के सूचना आयोग मे पदस्थापित सूचना आयुक्त और पदाधिकारियों के ढुलमुल रवैए के कारण नकारात्मक प्रभाव पड़ा। अभिषेक कुमार बताते हैं कि सूचना आयोग में या संबंधित को संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना के लिए आवेदन लगाने पर पहले तो सूचना देने से बचते हैं या नहीं देते हैं और यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी के यहां प्रथम अपील करते हैं तो फिर सूचना आधी अधूरी प्रदान की जाती है जो सरेआम संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम का खुलेआम धज्जियां उड़ाने जैसा है।
अतुल गुप्ता अपने अनुभव शेयर करते हुए कहते हैं कि संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना मांगने पर कवरिंग लेटर पर संलग्नक लिखा होता है लेकिन लिफाफा खोलने पर अंदर संलग्नक सूचना नहीं होती है जो बेहद ही शर्मनाक है।
अन्य कार्यकर्ताओं ने बताया कि जितनी मक्कारी संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत नियुक्त पदाधिकारी रहते हैं उतना शायद ही किसी अधिनियम में होता हो। आर टी आई लगाने पर पहले कहेंगे शुल्क कम भेजा है अतिरिक्त शुल्क भेजें और जब आवेदक अतिरिक्त शुल्क जमा करता है तो जवाब मिलता है कि सूचना नहीं दी जा सकती है।
कुछ कार्यकर्ताओं ने बताया कि हम आर टी आई शौकिया तौर पर नहीं लगाते और नहीं इतना फिजुल में पैसा, टाइम है कि हम दोनों बर्बाद करें। हम आज सच की लड़ाई लड रहे हैं जिसमें आर टी आई के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं को संबंधित को प्रदर्शित कर सच उजागर करना चाहते हैं लेकिन संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विभाग के ग़लत रवैए के कारण आज हम सभी आयोग को आइना दिखाने, जगाने के लिए उपस्थित एवं एकत्रित हुए हैं और आज यह दुसरी बार है जो हम सभी उत्तम प्रदेश कहें जाने वाले उत्तर प्रदेश के संसद द्वारा पारित सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विभाग को जगा रहें हैं । यह कारवां आज सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रदेशों में फैल चुका है।
इस यात्रा का ज्ञापन आज भी मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश से कोई लेने नही आया । राज्यपाल के डाक विभाग मे ही ज्ञापन देना पड़ा जबकि राज्यपाल को पूर्व सूचना थी यहाँ पर भारत के विभिन्न राज्यों से आये कार्यकर्ता जिनमे बिहार से पूरुषोत्तम जी, पश्चिम बंगाल से रामदेव जी, उत्तर प्रदेश से, अनूप सोनी, ऋषि, तृवेणी, राहुल कनौजिया, आदित्य प्रताप कनौजिया, अजय कुमार, चंद्र प्रकाश, दिव्य प्रकाश, संदीप कुमार, अशोक जयसवाल, संजय कुमार, श्याम प्रसाद, अजय कुमार, दुर्गा सिंह, सत्यपाल सिंह, अशोक कुमार, रजनी शर्मा, मनोज यादव, राजेश अग्निहोत्री, नजीर हुसैन, संजीव कुमार, शिवनाथ प्रसाद, अंकित, मनोज सिंह, , सुबोध सिंह, मुकेश महतो, रवि यादव तेजेश्वर् सिंह, ओंकार मल्होत्रा, मध्य प्रदेश से लखन लाल जी माखन सिंह धाकड़ इसके साथ ही झारखंड, राजस्थान, उड़ीसा, अन्य राज्यो के कार्यकर्ता भी आये और बहुत ही शांति पूर्ण तरीके से अपना ज्ञापन देने का प्रयास किया लेकिन सूचना आयोग मे ही सचिव द्वारा ज्ञापन लिया गया । उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्य सचिव को डाक के मध्यम बनाया गया बहुत ही गलत है की देश के बाहर से आये आरटीआई कार्यकर्ता से एक मिनट का समय भी नही है उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्य सचिव के पास समय नहीं जबकि इसकी सूचना 5 अप्रैल 2023 को दे दी गई थी । भारत के जनता के टैक्स के पैसों पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्य सचिव वेतन और सुख सुविधा पाते हैं और उनसे मिलने के लिए जनता को परमिशन लेना पड़े अंग्रेजों से भी बदतर स्थिति इन लोगों ने करके रखी है ज्ञापन देने के पूर्व सूचना देने पर भी यह मिलने के लिए तैयार नहीं है ऐसे राज्यपाल और मुख्य सचिव की भारत में कोई आवश्यकता नहीं है उन सबों का वेतन समाप्त किया जाए और इन्हें घर भेजा जाए ।
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